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________________ ( ७०१ ) नां दर्शन करवां, गुरुने सिद्धांत वहोराववा, सात लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, ने सिद्धांतनी पांच गाथा नित्य गुरुमुखें सांनलवी. ४ ' णमो यरियाएं' ए पदनुं वे हजार गुणणुं गु रावं, आचार्यनी नक्ति वीसामणा करवी; तथा वस्त्र पात्रादिक यापवां; अने आचार्यनो विनय करवो, थापनाचार्यनी बरासें पूजा करवी; तथा थापनाचार्यने माटे उपकरण मूकवां; अने या चार्यजीना बत्रीश गुण बे, माटे बत्रीश लोग स्सनो काजस्सग्ग करवो. ५ 'रामो थेराणं' ए पदनुं वे हजार गुणणं गुणवं, थिविर गिलान तपोधनादिक वडेरानी भक्ति वीसा मण करवी, प्रशन पान खादिम स्वादिम औष धादिक याणी यापवुं; तथा दश प्रकारना थिविर बे, माटे दश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. कोइ प्र तमां पन्नर लोगस्सनो काउसग्ग करवो कह्यो ले. ६ ' णमो उवद्यायाणं' ए पदनुं वे हजार गुणं ग rg, बहुश्रुत श्रीउपाध्यायजीनी नक्ति करवी, गु रुनी आज्ञा रूडी रीतें मानवी, अंगपूजा करवी, अने एमना पञ्चमेश गुण बे, माटे पच्चीश लोग स्सनो काउस्सग्ग करवो. ७ ' णमो लोए. सबसाहूणं' ए पदनुं गुणणुं वे हजा र गुणवं. तपस्वी सर्व साधु साधवीनी अन्न वस्त्रा दिर्के विशेषक्ति करवी, विसामण करवी, अ
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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