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________________ (900) ॥ अथ वीश स्थानकनुं गुणणुं तथा काउस्सग्ग प्रमाण यादिक संक्षेप विधि प्रारंभः ॥ १ ' णमो अरिहंताणं' ए पदनुं गुणणुं बेहजार गुणवुं. श्री अरिहंतजीनी त्रिकाल अष्टप्रकारी, सत्तरप्रका री, एकवीशप्रकारी, अष्टोत्तरी, स्नात्र प्रमुख पूजा यथाशक्ति करवी, नवीन प्रतिमा जराववी, चोवी श अंगनूहणां चोवीश वालाकूंची प्रमुख मूकवी, प्रतिमाजीनो नकरो करवो; तथा श्रीअरिहंतजी ना बार गुण बे, माटे बार लोगस्सनो काउस्सग्ग - करवो, ने बारगुण चिंतवी बार नमस्कार करवा. २ ' णमो सिद्धाणं' ए पदनुं गुणएं बेहजार गुणवुं, श्री सिद्धगवाननुं ध्यान करवुं, त्रिकाल पूजा करवी, उजय काल पडिक्कमणुं कर, पुंमरीकादिक गौत मप्रमुखनी पूजा करवी; तथा श्रीसिद्धक्षेत्र तीर्थ निमित्तें इव्य खरच, अने श्रीसिद्ध पन्नर प्रकार ना बे, माटे पन्नर लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो; य थवा श्री सिद्धना व गुण बे, माटे आठ लोगस्स नो का सरग करवो. स्नात्रपूजा वासदेप पूजा करे. ३ 'रामो पवयणस्स' ए पदनुं गुणणुं वे हजार गुएा बुं, सिद्धांत जक्ति करवी, पुस्तक लखाववां, वींटां गण पाठां प्रमुख ज्ञानोपकरण द्वावीश उपवासें थापवा, ज्ञाननी नक्ति करवी, विद्यमान श्रागम नी बसें करी क्ति करवी, यागमोनां नाम ल‍ दर्शन करवां, अथवा जो पुस्तक होय तो पुस्तको
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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