SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 723
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६५३) एनी चूर्मिनुं व्याख्यान ११२० . तथा एनी लघुत्ति श्रीसाधुरत्नरूत श्लोक ५७०० . त था तिलकाचार्य कृत वृत्ति १५०० श्लोक ले. ६ साधुजित कल्प विस्तारें ३७५ श्लोक जे. एनी श्रीधर्मघोषसूरि कृत वृत्ति २६५० श्लोक . तथा दशाश्रुतस्कंधन बाग्म अध्ययन कल्पसूत्र १२१६ श्लोक प्रमाण श्रीनश्बादुस्वामिळत जे. तेनी पृथ्वीचंइसरि कत टिप्पणी ६७० श्लो क ले, अने नियुक्तिनी १६७ गाथा नश्बादुस्वा मिळत . तथा एनी चूर्मि अने टीका पस घणी . परंतु ते घj करी विक्रम संवत् १२०० ना पसीनीले माटे टीपमां लखी नथी. हवे चार मूल सूत्रनां नाम लखियें यें. १ श्रावश्यक सूत्र. मूल १२५ गाथा ले. एनी टीका श्रीहरिनसरि कृत १२००० श्लोक . तथा एनी नियुक्ति श्रीनबादुस्वामिळत ३१०० श्लो क. तथा चूर्णि १७000 श्लोक जे. तथाबीजी आवश्यकत्ति (चतुर्विशति स्तव) २२००० ३. तथा एनीलघुत्ति तिलकाचार्य कृत १२३२१ श्लोक ले, घने अचलगहाचार्यरुत दीपिका १२००० श्लोक . तथा एनुं नाष्य 8000 श्लोक .तथा यावश्यक टीप्पणिका महनधारी श्रीहेमचंइसरि कृत श्लोक ४६०० एकठा करतां
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy