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________________ (६२६) थकी श्रीवीरनगवाननी अंगुली बमणी महोटी जाण वो, अने श्रीवीरनगवाननी अंगुलीथी श्रीषनदेव जगवाननी अंगुली बशे गुणी महोटी जाणवी, अने श्रीषजनी अंगुलथी प्रमाणांगुलीयढी गुणो महोटी जावी. हवे एके प्रमाणांगुल्ने एक सहस नत्सेधांगुल थाय. तिहां श्रीषनदेवतुं शरीर श्रीषनदेवनी यांगुली थी एकशोने वीश चंगुलनी उंचपणे डे, अने तेने नत्सेधांगुलीयें गणतां पांचशे धनुष्यनी चंचाइ श्रीक्ष पनदेवना शरीरनी थाय, जे कारणे श्रीषनदेवनी एक थांगुलीयें चारशे नत्सेधांगुल थाय, अने चारशें नत्सेधांगुलीयें चार धनुष्यने शोल आंगुल थाय, तेने एकशो वीश गुणा करीये तेवारें पांचशे धनुष्य पूरण थाय, तथा श्रीवर्धमानं स्वामीनु शरीर श्रीवई मानने हाथे साडा त्रण हाथ चपणे,ते एके हाथ उत्सेधांगुलनी गणतीना बे हाथ थाय, तेवारें श्रीम हावीरनुं शरीर सात हाथ उच्चपणे जाणवू. इति. ॥ अथ अयोध्यावर्णन ॥ विनीता नगरी नव बारही देवतायें नीपजावी.ते सर्व देवना योजन जागवा, अने तेनो कोट बारशे धनुष्य नंचो तथा श्रावशे योजन धरती मांहे , त था गढ प्रकार एकशो धनुष्यना जाणवा, कोशीशा पांचशे धनुष्यना जाणवा. तथा ४०० पोल जाणवी. शोल हजारने थारशें बारी, पांच योजन तलदही,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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