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________________ (५६९) ए७ साधारण नामकर्म. | १०१ :स्वर नामकर्म. ए अस्थिर नामकर्म. १०२ अनादेय नामकर्म. एए अगुन नामकर्म. १०३ अयशोऽकीर्ति १०० कुर्नाग्य नामकर्म. । नामकर्म. ॥ सातमा गोत्रकर्मनी उत्तर प्ररति बे॥ १ नच्चैर्गोत्र. ३ नीचैर्गोत्र. ॥ आठमा अंतराय कर्मनी उत्तर प्रकृति पांच ॥ १ दानांतराय. ४ उपनोगांतराय. २ लानांतराय. ५ वीर्यातराय. ३ नोगांतराय. एवं आठ कर्मनीएकशो अहावन उत्तर प्रकृति जाणवी. ॥ अथ नव तत्त्वना नाम ॥ १ जीवतत्त्व- ४ पापतत्त्व- ७ निर्जरातत्त्व. २ अजीवतत्त्व-५ आश्रयतत्त्व बंधतत्त्व. ३ पुण्यतत्त्व- ६ संवरतत्त्व-ए मोक्तत्त्व. ॥ हवे ए नव तत्त्वमांहेला प्रत्येकें एकेका तत्त्व ना जुदा जुदा नेदोनी संख्या विवरीने लखीयें .यें. तिहां प्रथम जीव तत्त्वना चौद नेद , ते लखीयें बैयें. १ सूक्ष्म एकेंख्यि पर्याप्ताः २ बादर एकेंश्यि पर्याप्ताः ३ संझी पंचेंख्यि पर्याप्ताः
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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