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________________ ( ५४९ ) नो रे ॥ वनमें ॥ १ ॥ उपशम अबिर गुलाल न डावत, खेलत नेम नगीनो रे | उनमें० ॥ २ ॥ रेव त गिरि पर इकता मिले सब, सहस वत्रीशे लीनो से ॥ वनमें ॥ ३ ॥ श्रात्मग्यानकी जरी पिचकारी, प्रभु लहे ज्ञान नगीनो रे ॥ वनमें० ॥ ४ ॥ रूप चंदए प्रभु गुण गावत, नेम राजुल शिव लीनो रे ॥ ॥ वनमें ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ धमाल ॥ ॥ सोरीपुर नगर सोहामणुं हो, समुड् विजयराजें || शिवादेवी राणी तेहनो हो, अंगज नेम जिणंद, वृंदावन फाग सोहामणो हो । हो मेरे ललना, गावत नेम जिणंद ॥ ० ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ समुड् विजयको चातलो हो, श्रीवसुदेवकुमार ॥ जास सो हाग गुणें करी हो, मान तजे हरि हार ॥ वृं ॥ २ ॥ बहुतेर सहस त्रिया रस रसधर, मधुकर सुख मकरंद || अंगज सकज बे तस दोन, गुण जा राम गोविंद ॥ वृं० ॥ ३ ॥ सोज सहस गोपी मनमोहन, मनोहर रूप मोरार ॥ मेघश्याम मुरली नैनीके, बाजत वेणुविशाल ॥ ० ॥ ४ ॥ चंग मृदंग पंग बजावत, गावत हे जनार ॥ नेम कुमर हन घर गिरिधर मिल, करत हे केलि पार ॥ वृं० ॥ ५ ॥ टोजें मिली मिली तान मचावत, जीलत सुरजी गु लाल ॥ मारत केसर कमल पिचकारी, रंग करत हे नर नार ॥ ० ॥ ६ ॥ जब लाल तनु वेष बन्यो हे,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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