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________________ (५०५) ॥ वा० ॥ ३ ॥ गुणवंतना गुण गोपवी, गुण हीणा गुं मांगी गोठ ॥ आप स्वरूप न उलखे, एतो पाप नी चलवे पोत ॥ वा० ॥ ४ ॥ अबुक साथें धरे अ. सकी, एतो पूजे न पूज्यना पाय ॥ परम महोदय पामशे, ज्यारें आवशे आपणे नाय ॥ वा० ॥ ५ ॥ श्रीदादा पास पसाना, में तो कुमतिनो पाड्यो को ट ॥ घर आएयो निज घरधणी, में तो चुकवी शो कनी चोट ॥ वा ॥ ६ ॥ वाचक नदयरतन वदे, जे पूजशे प्रनुना पाय ॥ ते परमपदें पद धारशे, वली संपत्ति लहेशे सवाय ॥ वा० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥अथ धर्मजिन स्तवनं ॥ ॥ केशर वरणो हो काढ कसुंबो माहारा लाल॥ए देशी॥ ॥ धर्मजिणंदा हो, में तुज बंदा ॥ माहारा लाल ॥ तुज गुण वृंदा हो,गावे इंदा ॥ मा० ॥ शिवतरु कंदा हो, तुं कुलचंदा ॥ मा० ॥ तेज दिणंदा हो, अति आनंदा ॥मा० ॥ १ ॥ मोहन गारी हो, मूरति तारी ॥ मा० ॥ प्राण पियारी हो, जानं बलिहारी ॥मा० ॥ यो शिवनारी हो, रंग करा ॥ मा० ॥ तें जग तारी हो, जे मुज वारी ॥ मा० ॥ दिल अटकाणो हो, दास कहाणो ॥ मा० ॥ तुं जग राणो हो, सुजश गवाणो ॥ मा० ॥ करुणा आगो हो, सेवा जागो ॥ मा० ॥ हवे न ताणो हो, मलियो टाणो ॥ मा० ॥ ॥ ३ ॥ नेह नवेली हो, सुमति सहेली ॥ मा० ॥ रंगें खेली हो, थई मुफ बेली ॥ मा० ॥ माया वेली
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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