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________________ (४८‍) ॥ ० ॥ १५ ॥ डुर्नागणी नारी जिका, बोले कर्कश वाणी ॥ मे० ॥ रे रे अधम फीलिया, खालसवंत जा एए ॥ ० ॥ ० ॥ १६ ॥ परणी जाई पारकी, शुं कीधुं तें धीठ ॥ मे० ॥ पोतानुं पण पेट ए, निठुर जराय न नीठ ॥ मे० ॥ ० ॥ १७ ॥ कान कोट नूपण सदु, वेची खाधुं तेह || मे० ॥ निर्लज तुफ घरवासमां, कहे सुख पाम्यु जेह ॥ मे० ॥ ० ॥ ॥ १८ ॥ अमल समो सुगो नहीं, मानो ए मुफ शीख ॥ मे० ॥ बाले सुंदर देहडी, त्र्यंत मगावे जीख ॥ ॥ मे० ॥ ॥ १९ ॥ दालिीने दोहिनुं, सूर नग्यानुं शाल ॥ मे० ॥ श्रीमंतने पण नहीं ननुं, जोतां ए जंजाल ॥ मे० ॥ ० ॥ २० ॥ सासु बहु वढतां बतां, शें मल खंत || मे० ॥ बालक खाये जाणतां. जो घर अमल हवंत ॥ मे० ॥ ० ॥ २१ ॥ प्राणी वध जिगुं दुवे, ते तो तजीयें दूर ॥ मे० ॥ कर्मा दान दशमं कयुं, विष व्यापार पर || मे० ॥ श्र० ॥ ॥ २२ ॥ चतुर विचार ए चित्त घरी, कीजें अमल परिहार || मे० ॥ खिमा विजय पंमित तणो, कहे माणिक मनोहार ॥ मे० ॥ ० ॥ २३ ॥ इति ॥ अथ ॥ श्रीजिनहर्षजीकृत पांचमा यारानी सवाय ॥ ॥ वीर कहे गौतम तुलो, पांचमा आराना नाव रे ॥ खीया प्राणी प्रति घणा, सांनल गौतम स्व नाव रे || वीर० ॥ १ ॥ सहेर होशे रे गामडां, गाम
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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