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________________ (४ ) हिफीण ॥ मे ॥ संग करे कोण एहनो, पंमित लो क प्रवीण ॥ मे ॥ अ॥ ५ ॥ पहेलु मुख कडवू दुए, वली घांटो घेराय ॥ मे ॥ उदर व्यथा नि त्य आफरो, इणथी अवगण थाय ॥ मे ॥ अ० ॥ ॥ ६ ॥ नाक बंधायें बोलला, आधुं वचन बोलाय ॥ मे ॥ अमीय सुकाये जीननं, एहनी खाय बला य॥ मे० ॥ अ॥ ७ ॥ दाढोने मूबांदिशि. नगे नही अंकूर ॥ मे० ॥ काया काली मश हुए, गाब डी गाले नूर ॥ मे ॥ अ ॥॥ पलक अवेसं जो लोए, तो प्रातम अकुलाय ॥ मे० ॥ नाक चूए नयणां करें, काम करी न शकाय ॥ मे० ॥ अ॥ ॥ए ॥ अधविच मारगमां पडे, जीवन मृत्यु समा न ॥ मे० ॥ हाथ पगोनी नस गले, अमली यावी शान ॥ मे ॥ अ० ॥ १०॥ आगराई पालो कह्यो, मालवी मांहे नेल ।। मे० ॥ आप इस्युं सखरूं नही, मिशरीगुं मन मेल ॥मे॥ ॥११॥ नवटांक जेनर जीरवे, तसु अहि विष न जणाय ॥ मे० ॥ अमल घणुं खाधाथकी, कंदर्प बल मिट जाय ॥ मे॥4॥ ॥१॥ अमलीने उन्हुँ रुचे, टाटुं नावे दाय ॥मे । खोजी रोटी खांम घी,नपर दूध सुहाय ॥मे॥०॥ ॥ १३ ॥ कुलवंती जे कामिनी, जाणे जुगति सुजाण ॥मे॥ वस्तु वेची किए करी, अमलीने दीए आग ॥मेगाअ॥१४॥ प्रीतम याशा पूरती,न करे रीश ल गार ॥मे॥ कथन न लोपे कंतनु,ते विरली संसार ॥मे०
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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