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________________ (४७६) जाल्यो, एहनो कोई न दहीयो ॥ ॥ ५ ॥ पहोर पोसा ते करियें, ध्यान प्रनुनु धरिये ॥ मन व च काया जो वश करियें, तो नव सायर तरियें ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ र्या समिति नापा न बोले, आउँ अवलुं पेखे ॥ पडिकमणाशुं प्रेम न राखे, कहो के म लागे लेखे ॥ या० ॥ ॥ कर उपर तो माला फिरती, जीव फरे मनमांदी ॥ चितडं तो चिटुंदिशि मोने, णे नजने सुख नांह। ॥ श्रा० ॥ ७ ॥ पौष ध शालें नेगां थश्ने, चार कथा वली सांधे ॥ कांक पाप मिटावण आवे, बारगणुं वलि बांधे ॥ श्रा० ॥ ५ ॥ एक ती बालस मोडे, बीजी नंघे वेठी ॥ नदियोमांथी कांक निसरती, जई दरियामां पेठी ॥ आ ॥ १० ॥ आई बाई नणंद नोजाई, न्हानी मोहोटी वदने । सासु ससरो मा ने मासी, शीखा मण ने सहुने ॥ प्रा० ॥ ११ ॥ उदय रतन वाचक नपदेशे, जे नर नारी रहेगे ॥ पोसामांहे प्रेम धरी ने, अविचल लीना ने ॥ प्रा० ॥ १२ ॥ ॥ अथ वैराग्यसजाय ॥ मननमरानी देशीमां ॥ ॥ उंचा मंदिर मालीयां, सोड्य वालीने सूतो ॥ काहाडो काहाडो एने सद् करे, जाणे जनम्योज नो तो॥ १॥ एक रे दिवस एवो आवशे, मने सबलो जी साले ॥मंत्रीमच्या सर्वे कारिमा,तेनुं कांइन चाले॥ एक रे दिवसाए अांकणी ॥ साव सोनांनां रे सांक लां, पहेरण नव नवा वाघा ॥धोखं रे वस्तर एना
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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