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________________ ( ४८५ ) तुमें कांइ तजो, कांइ तजो धन ने धाम ॥ धन० ॥ ५ ॥ परणीने झुंजी परिहरो, हाथ मव्यानो संबंध ॥ प बीने करशो स्वामी उरतो, जिम कीधो मेघमुलिंद ॥ ॥ धन० ॥ ६ ॥ जंबू कहे रे नारी सुणो, श्रम मन संयम नाव ॥ साचो सनेह करी लेखवो, तो संयम व्यो म साथ ॥ ६० ॥ ७ ॥ तेणे समें प्रनवोजी यावियो, पांचों चोर संघात ॥ तेने पण जंबुस्वामियें बूजव्या, बुधव्या माय ने बाप ॥ धन० ॥ ॥ सा सु ससराने बृजव्या, बुजवी आठे नार॥ पांचों सत्तावी शशुं, लीधोजी संयम नार॥धन || सुधर्मास्वामी पा सें विया, विचरे बे मनने उल्लास ॥ कर्मखपावी के वल पामीया, पोहोताजी मुक्ति मोकार ॥ ध० ॥ १ ॥ ॥ अथ एकादशीनी सचाय प्रारंभः ॥ || आज महारे एकादशी रे, नणदल मौन करें। मुख रहियें || पूढयानो पडुत्तर पाठो, केहने कांइ न कहियें ॥ ० ॥ १ ॥ माहारो नणदोइ तुमने वाल्हो, मुकने ताहारो वीरो ॥ धूडाना बाचका नरतां, हाथ न यावे हीरो ॥ ज० ॥ २ ॥ घरनो धंधो घणो को पण, एक न याव्यो चाडो || परनव जातां पालव जाले, ते मुऊने देखाडो ॥ प्रा० ॥ ३ ॥ मागशिर गुदि गीयारश महोटी, नेवुं जिनना निर खो || दोहोदशो कल्याणिक महोटां, पोथी जो ने हरखो || ० ॥ ४ ॥ सुव्रत शेठ थयो शुद्ध श्राव क, मौन धरी मुख रहीयो ॥ पावक पूर सघलो पर
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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