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________________ (४५) ॥धार एकवीशमुं तथा बावीशमुंगति अगतिनुं ढाल त्रेवीशमी ॥धण समरथ पीयु नानडो॥ ए देशी॥ ॥ पर्याप्ता पंचेंश्यि जेह, तिर्यचने मानव मरी तेह ॥ चार निकायमांहे नपजे. सुरनी योनि जाणो ससनेह ॥ १ ॥ गति जागति लहो जीवनी, असं ख्याता आउरवावंत ॥ चेंघिय पर्याप्त, तिरियंचने नर ए बे तंत ॥ गति ॥ २ ॥तिम पर्याप्ता वली, न जल ने जे तर प्रत्येक । अमर मरीने अवतरे, स मजो ए पांच पर्दै सुविवेक ॥ गति० ॥३॥ संस्था आयु पर्याप्ता, गर्नज नरने तिर्यंच जेह ॥ साते नरके उपजे, तिहांथी आवे नर तिरियमा तेह। गति॥४॥ नू जल वसई योनिमां, नारकीने वर्जी सर्व जीव ॥ आवी यावी उपजे, निज निज कर्म प्रमाणे सदीव ॥ गति ॥ ५ ॥ दृथिव्यादिक दश दमकें, जू जल वण सश्ना जीव जाय ॥ वली ते दश दंगक विना, तेत वान पण नवि थाय ॥ गति ॥ ६ ॥ तेक वान तिम वली, एथिव्यादिक नव दंम जति ॥ दश पदना विग सेंश्यिमांहे, विगलेंडी दश पद उपजंति ॥ गति॥७॥ गर्नज तिरियंच नपजे, मरी चोवीशे दंझक मांय ॥ चोवीश पदना जीव ते, गर्नज मरी तिरियंच थाय ॥ गति ॥ ७ ॥ चोवीश पदने शिव पदें, मानव मरी सघने जाय ॥ तेकने वाक विना, बावीश पदना मा नव थाय ॥ गति ॥ ७ ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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