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________________ ४५६ ) रे लहो मननी रली || देव तिरियने जी, नव नार कने कह्या वली ॥ थलो ॥ वली पांच कह्या विकलेंड़ी मांहे, चरिं मां बो कह्या ॥ पांच थावरमां त्रण प्रकाश्यां, सूत्र मार्गे सह्यां ॥ १ ॥ ॥ द्वार पंदरमुं उपपातनुं ॥ तथा शोलमुं च्यवननुं ॥ ढाल अदारमी || एक अनोपम शीखामण खरी ॥ ए देशी ॥ ॥ गर्नज तिरिय, विगल सुर नारकी ॥ असंख्य सं ख्याता, व्यो तमें पारखी ॥ नर संख्याता, सन्नी अ संख्याता ॥ तेमज थावर, हवे वणसई ख्याता ॥ ढाल ॥ वनस्पतिमां विख्यात जाणो. अनंता उपजे चवे ॥ उपजे जेता चवे तेता, बीजो नेद नहीं नवे ॥ १ ॥ ॥ द्वार सत्तरमुं ॥ ढाल जंगली शमी ॥ काढबानीं॥ देश ॥ नर ॥ पुढवी अपने वायु, वनस्पतिमांहे हो, उत्कृष्टुं यायु नहो ॥ वरस बावीशने सात, त्रण दश सहस हो, साधुं सदहो ॥ १ ॥ त्रण दिवस ते काय, तिरि केरुं हो, त्रण पव्य सारिखो || सुर निरय साग र तेत्री, व्यंतर आयु हो, पव्य एक पारिखो ॥ २ ॥ साधिक पव्य चंद सुर, असुर निकायें हो, सागर जा जेरहूं || पव्य दोये देशूल, निश्वय जाणो हो, निका य नव केरडूं ॥ ३ ॥ बे इंडियनुं वरस बार, तेंशिय नुं दिन हो जंगल पचाश बे ॥ चनरिंडियनुं ब मास, अनुक्रमें आयु हो उत्कृष्ट एह बे ॥ ४ ॥ जघन्य श्रा यु एक मुहूर्त, पुढवी यादें हो दमक दशमां कह्यो । दस सहस वरस प्रमाण, नवनपति नरकें हो, व्यंत
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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