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________________ (४५४) ॥हार सातमुंढाल दशमी।देखीकामिनी दोय॥एदेशी ॥ कृष्ण नील कापोत तेजो, पद्म शुकल कही। के तेजो॥ ए बलेश्या नर तिर्यच, गर्नजमां लही ॥ के गर्न० ॥१॥ नारक रेक वान, के विगल वेमागी या ॥ के वि० ॥त्रण गलेश्यावंत, के नीच नच जाणीया ॥ के नीच० ॥ २॥ ज्योतिषी पांचे माहे, तेजोलेश्या घणी॥ के तेजो० ॥ बाकी चनद दंमकें चार, लेश्या सूत्रे जणी ॥ के जेश्या० ॥३॥ ॥धार आठमुं॥ ढाल अगीयारमी। बिमलीनी देव: ॥ ॥ आठमुं॥ इंडिया हारने, सुगम तेहनो विचार हो ॥ जो नवि नावें हो ॥ जेहने इंडिय.होय जे ती, तेमजगणी लेजो तेती हो ॥ नो नवि० ॥ १ ॥ ॥धार नवमुं॥ ढाल वारमी ॥ फतमलनी देशी ॥ ॥ वेदनाकषायने मरण, वैक्रिय तेजस वली॥ थाहारकने केवलीसात, ए हो मननी रली ॥ १ ॥ संझी नरने होय सात, तिरि सदु सुर पदें । आहार कने केवल वर्जित, पांच आगम वदे ॥ २ ॥ नारक वाउमा पहेलां चार, बाकी सात दंम ॥ वेदनादि पहेलांत्रण होय, कह्यां श्रुतमां जिके ॥३॥ ॥हार दशमुं॥ ढाल तेरमी ॥ प्रनु ताहारो प्रनु ताहारो महेर करी मुने जी ॥ ए देशी ॥ ॥ विकलेंडी विकलेंडीमांहे दृष्टि बे वदी जी ॥ समकितने समकितने मिथ्या दृष्टि सोय हो ॥ पांच
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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