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________________ (४४३) नेट्या ॥ चर ॥ नव नव संचित पाप करम सब, तन मनका मेव्या ॥ सुकृत कीजें,महाराज ॥सुक०॥ जिनवरका गुण नज लीजें, समकित अमृत रस पी जे, लाज जिन नक्तिको लहीये रे ॥लान ॥ चला ॥१॥ करो जी मत मुखसे बडाई ॥ करो० ॥ तज तामस तन मनकी सुमता, रेनां ना ॥ रीतसे बोलो, मेरी जान ॥रीत ॥ आतम समतामें तोलो, मत मरम पारका खोलो, मौन कर तन मनसें रहि ये रे॥ मौन ॥ चल ॥२॥ जोबन दिन चार तणो संगी रे ॥ जोबन ॥ अंत समय चेतन उठ चाले, काया पडि नंगी॥प्रीत सब तूटी, मेरी जान प्रीत ॥ आउखाकी खरची खूटी, चेतनमें काया रू ती, सुख दुःख आप किया सहियें रे ॥ सुख० ॥ चल ॥ ३ ॥ जगतसें रहेनां नदासी रे ॥ जग० ॥ परख्या में जिनराज, हरो मेरी उर्गतिकी फांसी ॥ त जो सब धंधा, मेरी जान ॥ तजो० ॥ जिनवर मुख पूनम चंदा, जिनदास तुमारा बंदा,मेरे एक जिन दर्श न चहिये रे ॥ मेरे ॥ चल ॥ ४ ॥इति ।। ॥बीजी जीवशिखामणनी लावणी ॥ ॥ तुम जजो जिनेसर देव, मुगति पद पाय॥मुग०॥ अब अचल अखंमित ज्योत, सदा सुखदाइ॥ ए आं कणी ॥ में रुट्यो चोराशी मांहे, नूट्यो में नरम ॥ नूट्यो० ॥ महारे उदये अनंतां कुःख, बांध्यां जब करम ॥ में कदिएक दुळ रंक, फियो तजी शरम ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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