SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४२) ॥ बिकट घट मुर्गतिका जारी, नीर जिहां नरतिकु मति नारी ॥ बरजी उन नैनोंकी मारी, मुख्या के कामी संसारी॥ इनोंकी हो रइ खूधारी, जित्या को सत्य धरमधारी ॥ प्रनु तुम परमारथ पाया, शरण अब जिनदास आया । ७ ॥ ॥चेत नर निगोदका बासी, कराई जगमें तें हा सी॥ कुमतिकी पडी गले फांसी, सुमति सुं रखी है उदासी ॥ कुमतिकी बसी सेज खासी, मान रह्यो पम ताकू मासी ॥ हियो खोल अरिहंतकों परखो, करो जिनदास आप सरिखो ॥ ५ ॥ ॥ अफल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रोंकी न ही मानी॥ किया नही गुरु निर्यथ ग्यानी, कानसं लगी कुमति रानी॥ जगतमें उतर गया पानी, गति तेरी मुर्गतिकी ठानी। सेवक तोरा जिनदास बाजे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ ए॥ ॥ सफल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रोंकी तें मानी ॥ किया निज गुरु निग्रंथ ग्यानी, कानमें ल गी सुमति रानी ॥ जगतमें अधिक चढयो पानी, ग ति तेरी सुरगतिकी गनी ॥ सेवक तेरा जिनदास बा जे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ १० ॥ ॥अथ पहेली जीवशीखामनी लावणी ॥ ॥ चल चेतन अब उठ कर अपनें, जिनमंदिर ज यें ॥ किसीकी नूंमी नां कहीयें, किसीकी बूरी नां क हीयें ॥ चल ॥ ए अांकणी ॥ चरण जिनवरजीका
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy