SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४१३ ) ॥ ४ ॥ समयसुंदर कहे सुणो रे लोकाइ, स्वारथ हे नलि परम सगाई || स्वा० ॥ ५ ॥ इति ॥ || पद राग पट ॥ ॥ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ, बेरन निश कहांसें रे याइ ॥ सो० ॥ निश कहे में तो बाली रे जोली, बडे बडे मुनिजनकं नाखुं रे ढोली || सो० ॥ १ ॥ निश कहे में तो जमकी दासी, एक हाथे मूकी बीजे हायें फांसी ॥ सो० ॥ २ ॥ समयसुंदर कहे सुनो नाइ ब नीया, याप मूए सारी मुब गइ डुनीयां ॥ सो० ॥ ३ ॥ ॥ अथ पंचपरमेष्टी प्रारति ॥ ॥ इहविध मंगल आरति कीजें, पंच परमपद नजि सुख लीजें ॥ इह० || पहेली आरति श्रीजिनरायजा, नविजन पार उतार जीहाजा ॥ इ६० ॥ १ }! बीजी प्रारति सिधस्वरूपी, ध्याने उपजे परम रस कूपी ॥ इह० ॥ २ ॥ त्रीजी आरति सूरि मुलिंदा, जनम जनम दुःख दूर हरंदा ॥ इह० ॥ ३ ॥ चोथी आरति श्रीवाया, दरिसण देखत पाप नसाया ॥ इह० ॥ ४ ॥ पांचमि आरति साधु बताइ, मोह मान ममताकुं हटाइ ॥ इह० ॥ ५ ॥ बही आरति हे सुखदाइ, कुमति विदारण शिव अधिकाई ॥ इह० ॥ ६ ॥ सातमि आरति श्रीजिनबानी, ध्यान धरत मुगती सुखदानी ॥ इह० ॥ ७ ॥ इति प्रारति ॥ ॥ अथ नेमजीना साते वार लिख्यते ॥ ॥ सखि नमीयें ते नेम जिनराज, गढ गिरनारें
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy