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________________ ( ४१२ ) आचार रे || समकित मूल बार व्रत पाली, कोधो जग उपगार रे || धन० ॥ ॥ जिनशासन उद्योत करें। ने, पाली त्रण खंम राज रे ॥ ए संसार असार जाली नें, साध्यां यातम काज रे ॥ धन० ॥८ ॥ गंगाणी न यरीमां प्रगट्या, श्रीपद्मन देव रे ॥ विबुध कानजी शिष्य कनकने, देहो तुम यसेव रे ॥ धन ॥ पद ठुमरी मां गीत ॥ ॥ ए॥ ॥ सहसफला रे मोरा साहेबा, तोरी स मरी सुरत पर वारी जावं रे ॥ सह० तन मन लगन लगो 5 क तोशुं, हांरे में तो देव यवर नही ध्यानं रे ॥ स० ॥ १ ॥ सफल खाजकी घडी हे मेरी, हांरे में तो देखी दरश सुख पानं रे || सह० || २ || वदन कमल बबि देखत सुंद र, हांरे हुं तो रोम रोम उलसानं रे ॥ सह ॥ ३ ॥ तुम गुनको कबु पार न यावे, हीरे हुं तो उपमा कहा बतानं रे ॥ सह० ॥ ४ ॥ कोर्त्तिसागर कहे. जव जव तोरी, हांरे में तो मोज महिर नित पानं रे ॥ स०॥५॥ ॥ अथ पद राग पट ॥ ॥ स्वारथकी सब हे रे सगाई, कुण माता कुण वेनड नाइ ॥ स्वा० ॥ १ ॥ स्वारथ नोजन मुक्त सगा 5. स्वारथ बिन कोई पाणि न पाइ ॥ स्वा० ॥ २ ॥ स्वा रथ मा बाप शेठ बडाइ ॥ स्वारथ बिन नदु होत स हाइ ॥ स्वा० ॥ ३ ॥ स्वारथ नारी दासी कहाइ, स्वा रथ बिन जाती ले धाइ ॥ स्वा० ॥ ४ ॥ स्वारथ चेला गुरु गुरु नाई, स्वारथ बिन नित होत जराइ ॥ स्वा०
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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