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________________ (४०४) प॥ मा० ॥ ६ ॥ जे विण घडी सरतो नही, जीव न प्राण प्राधार ॥ ते विण वरस वही गयां, शुरू नहि समाचार ॥ मा० ॥ ७ ॥ आव्यो तुं जीव एकि लो, जातां नहि कोई साथ ॥ पुण्य विना तुं प्राणि या, घसतो जाइश हाथ ॥ मा० ॥ ७ ॥ मग कोरी मांहे पेशीयें, तोहि न मेले मोत ॥ चेतणहारा चेतजो, जाशे गोफण गोला सोत ॥ मा०॥ ए॥ त्रपति नूप केइ गया, सिह साधक लाख ॥ कोड गमे करण आवट्या,अमर कोइ जीव दाख ॥मा०॥ ॥ १० ॥ आपण देखतां जग गयो, आपणे पण जाणादि मेली रहेशे नही,मोहोटा राय ने राणा॥ ॥ मा०॥११॥ दाहाडे पहोते आपणे, सदु कोई जाशे ॥ धर्म विना तुमें प्राणिया, पडशो नरकावा सें ॥ मा० ॥ १२॥ संबल होय तो खायें, नही तो मरीयें नूख ॥ आपणडो तिहां कोई नही, जेहने कहियें दुःख ॥ मा० ॥ १३॥ आगल हाट न वाणी या, न करे कोई नधार ॥ गांठे होय तो खायें, न हि कोई देअपहार ॥ मा० ॥ १४ ॥ निश्चल रहे Q ले नही, म करो मोडा मोड ॥ परस्त्री प्रीत न मां मियें, ए तो महोटी खोड ॥ मा० ॥ १५॥ वस्तु पी यारी मत लीयो, म करो तांत पियारी ॥धर्म विना जग जीवने, होशे अंतें खुधारी॥मा०॥ १६ ॥ कूड कपट तुमें मत करो, जीव राखजो गम ॥ जीवदया प्रतिपालजो, जो होय वैकुंठ काम ॥ मा० ॥१७॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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