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________________ (३५) ॥ अथ पार्थ जिन बंद ॥ ॥ सकल सुखाकर जिनवरराय, नवियण वंदो पासजीना पाय ॥ नामें नवनिधि होये वली, पूज्यां पातक जाये टली ॥१॥ नयरी वणारसी अश्वसेन राय, वामादेवी जेहनी माय ॥ सतीय शिरामणि रूपनिधान, जिणे जन्म्या प्रनु पार्श्व प्रधान ॥ २ ॥ अंगे यांगी दीपे अति सार, रत्नजडित शिर मुकुट उदार ॥ काने कुंमल बांहे बेरखा, हार हीये सोहे नवलखा ॥ ३ ॥ इंड्नील सम तनु दीपंत, तेजें शशिहर रवि जीपंत ॥ वदनकमल जस पूनम चंद, नयन कमल दीठे अानंद ॥ ४ ॥ वाघ सिंह गज जय सवि टले, नूत प्रेत व्यंतर नवि बले ॥ रोग सोग कुःख वारणहार, पासजीने नामें नित जय जयकार ॥ ५ ॥ अंचलगो उदयो जाण, धर्म मूर्ति सूरि जगजाण ॥ तास तणा वाचकवर शिष्य, वंदूं राजमूर्ति गणि मुख्य ॥ ६ ॥ तास शिष्य पंमित कलट धरी, स्तवन रच्युं में खंतें करी ॥ विजयसागर मुनि पनणे मुदा, स्तवन नणे तस घर संपदा ॥ ७ ॥ ॥अथ वैराग्यसबाय ॥ ॥ ईथा मेवासमें बे, मरदो मगन जया मेवासी॥ कायारूप मेवास बन्यो है, माता ज्युं मेवासी॥ साहे बकी शिर आए न माने, पाखर क्या ले जासी ॥ई० ॥ १ ॥ खाई अति उन्ध खजाना, कोटमा बढुंतेर कोठा ॥ वणसी जातां वार न लागे, जैसा
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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