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________________ (३५) वामाजीजो नीगरो एडो, बेयो नाए जुगमें तेडो॥ अमां ॥ १ ॥ सरग मरत पातालजा माडु, जड़ा सेवी पाय ॥ कामणगारो पासजी आयल, मुफे दि समें जाय ॥ अमां ॥ २ ॥ सर्पि सर्पा जेरे बरंधा, दिनो जे नवकार । पासजीजो नालो गिनी दुया, इंश इंशणी सार ॥ अमां ॥३॥ वेत्रा देव दिहा जड़ा, देव न केडे कम्म ॥ तुं निरागी गति निवारण, अछे कमैजो दम्म ॥अमां ॥४॥ जेमां विंका ते मां इनके नजियां, जगमें वमो पीर ॥ जेहर्षजो सां मी मल्यो, खीनी दुआ खीर ॥ अमां ॥५॥ ॥अथ सिमाचल स्तवनं ॥ ॥ चालो चालो सिमाचल जयें रे, ऋषनदेव सुखकारीयां ॥ चालो चालो सिमा० ॥ ए आंकणी॥ नानिराया मरुदेवीको नंदन, हारे एतो जुगला धर्म निवारियां रे ॥ ३० ॥ १ ॥ आदि जिन नेट्यां सवि फुःख मेट्यां, हारे में तो पाप करम सब टालियां रे॥ ३० ॥ २ ॥रायण रूख समोसस्या स्वामी, हारे ए तो देखी नविक मन मोहियां रे ॥ ३० ॥३॥ के शर घोली जरी रे कचोली, हारे मेंतो विधियुं अंगियां रचावियां रे ॥२॥४॥ कर जोडी दलिचंद गुण गावे, हारे में तो नवोनव शरण तुमारियां रे ।। २० ॥५॥ ॥अथ अनंतजिन स्तवनं॥ ॥ चित्त लागो अनंतजिन चरननसें, चरननमें जिन चरननसें ॥ चि०॥१॥ ए आंकणी ॥ अनंत
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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