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________________ (३१) गाममां तुंहीज सोहिये, सुर नरनां मन मोहियें रे॥ ज० ॥॥बे कर जोडीने प्रच पाये लागु, नित नि त दरिसण मागु रे ॥ ज० ॥ देव नही कोय ताहा रीतोलें, नितलान एणि परें बोले रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्रीमहावीरजिनस्तवनं ॥ ॥ महावीर स्वामी मुगतें पोहोता, गौतम केवल झान रे ॥ धन दीवाली धन अमावास्या, वीरत| निर्वाण ॥ प्रनुमुख जोवाने, महारे दीवाली थई आज ॥प्र० ॥ मोहि मोहि रे मीठडा लाल, जिन मुख जोवाने ॥१॥ ए आंकणी॥ चारित्र पाली निरम लुं ने, टाली विषय कषाय रे॥ एवा मुनिनें वांदीयें तो, तारे नंवपार ॥ प्र० ॥ म ॥ २ ॥ बाकुला वहो या वीरजी ने,तारी चंदनबाला रे ॥ केवल लहीने मु क्तं पोहोता, पाम्या नवनो पार ॥प्र० ॥ म० ॥३॥ एवा देवनें. वांदीयें, जे पंचम झानने धरता रे॥समो सरणे दर देशना, प्रनु तास्यां नर ने नार ॥ प्र० ॥ म० ॥४॥ चोवीशमो जिन जिनेसरु ने,मुक्ति तणो दातार रे ॥ कर जोडी कवियण श्म नणे, मारो नव नो फेरो टाल ॥ प्र० ॥ मम् ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ दानशीयलतप अने नाव- चोढालियुं प्रारंजः॥ ॥दोहा॥ ॥ प्रथम जिणेसर पाय नमी, पामी सुगुरुप्रसा द॥ दान शियल तप नावना, बोलिश बदु संवा द॥ १ ॥ वीर जिणंद समोसस्या,राजगृही उद्यान ।।
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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