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________________ ( ३०१) रं० ॥ जमरी दे दे करती थे, फिर फिर ए अधि कार ॥२०॥३॥ नाचत नाद अनादिको, ढुं नाच्यो निरधार।। २० ॥ श्रीश्रेयांस कृपा करो, आनंदके आधार ॥ रंगी० ॥४॥इति श्रेयांसजिन स्तवनं ॥ ॥अथ उपदेश पद ॥ ॥ में दुं मुसाफर आया हो प्यारा, नहिं को मेरा ॥ नहिं ॥ जनम दुवा तब अपना कहावे, नहिं रहेणेला मेरा हो प्यारा ॥ नहिं० ॥ ॥ स ऊन कुटुंब सब अपना कहावे, ज्युं तीरथका मेला हो प्यारा ।। नहिं० ॥ २ ॥ धन कंचन कबु स्थिर नहिं रेणां, ज्युं वादलका घेरा हो प्यारा निहिं ।। ॥३॥ रूपचंद कहे प्रेमकी बातां, ज्युं घानीका फेरा हो प्यारा ॥ नहिं॥४॥ इति ॥ ॥ अथ प्रजाती रागमां पद ॥ ॥ जोबनीयांनी मोजां फोजां, जाय नगारां देती रे ॥ घडि घडिनां घडियालां वागे, तोय न जागे तेथी रे ॥ जो० ॥१॥ जरा रासी जोर करे , फे लावी फजेती रे ॥ यावी अवधे उनशे जाशे, लख पतिने लेती रे ॥ जो० ॥ ॥ मालें बेगो मोज करे ने, खांतें जूवे खेती रे ॥ जमरो नमरो ताणी लेशे, गोफण गोलासेंती रे ॥ जो० ॥ ३ ॥ जम राजाने शरणे जावं, जोरालो को जेहथी रे ॥ उनियां दूजो दीसे नांहिं, आखर तरशो तेहथी रे ॥ जो॥४॥ दां त पड्याने मोसो थयो, काज न सयं कहेथी रे॥नदय
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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