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________________ ( २०० ) तब लग जिन अनुसरनां ॥ खतरा ॥ २ ॥ धन क कंचनकूं क्या करनां, आखर एक दिन मरनां ॥ खत रा० ॥ ३ ॥ मोह मिथ्यात माहा मद हरनां, सुमति गुपति चित्त धरनां ॥ खतरा० ॥ ४ ॥ संवर नाव स दा मन धरनां, तम इर्गति हरनां ॥ खतरा० ॥ ॥ ५ ॥ ग्यान उद्योत प्रभु पाये परनां, शिव सुखकूं अनुसरना || खतरा० ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ प्रजातियुं ॥ ॥ वाणी हे विशाल, तेरी अगम अगोचरी ॥ द शमे द्वार ऐसे, कारध्वनि उच्चरी ॥ वा० ॥ १ ॥ शब्द एक अनेक अर्थ, बूऊत हे हरी ॥ चनदराज लोकमांहि, धौरधार विस्तरी ॥ वा० ॥ २ ॥ नगर मध्यें नदी वहे, जरी लीयो जन गगरी ॥ मत मतां तर ऐसे नये, एक अंग अनुसरी ॥ वा० ॥ ३ ॥ बी ज तैसो वृक्ष नयो, बरखा बरखत जुरी ॥ रूपचंद आत्म बुद्धि, तैमी समजण परी ॥ वा ॥ ४ ॥ ॥ अथ शत्रुंजय पद ॥ ॥ में नेट्या नानिकुमार, अखीयां सफल नइ ॥ में व्या० ॥ नेंना सफल नइ ॥ में नेट्या० ॥ ए यांक णी ॥ तीरथ जगमां ने घणां रे, तेहमां ए वे सार ॥ शेगुंजा सम तीरथ नही रे, तुरत तरत जवपार ॥ अखी यां० ॥ १ ॥ जुगला धर्म निवारिया रे, तीन जुवन तुं सार || सोवन वरणी देह बे रे, पन लांबन मनोहार ॥ अखीयां ॥ २ ॥ सोरठ मंगल तुं
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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