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________________ (२ए) मदिरायें माच्यो, नव नव वेश करी नाच्यो ॥ वि० ॥ ४ ॥ आगमवाणी समीश्राशी, नवजलधि मांहि वासी, रोहित मत्स्य समो थाशी ॥ वि० ॥ ५ ॥ मो हनी जालने संहारे, आप कुटुंब सकल तारे, वरण वीये ते संसारें ॥ वि० ॥ ६॥ संसारें कूडी माया, पंथ शिरें पंथी आया ॥ मृग तृष्णा जलने धाया ॥ वि० ॥ ॥ नवदव ताप लही आया, पांमव परि कर मुनिराया, शीतल सिमाचल बाया ॥ वि० ॥ ७ ॥ गुरु नपदेश सुणी नावें, संघ देशो देश थी आवे, गिरिवर देखी गुण गावे ॥ वि० ॥ ए ॥ संवत अढार चोराशीयें, माघ उज्ज्वल एकादशीयें, वांद्या प्रनुजी विमल वसीयें ॥ वि०॥ १० ॥ जात्रा नवाणुं अमें करीयें, जव जव पातिकडां हरियें, ती र्थ विना कहो किम तरीयें ॥ वि० ॥ ११ ॥ हंस म यूरा इणे में, चकवा शुक पिक परिणामें, दर्शने देवगति पामे ॥ वि० ॥ १२ ॥ शेव्रुजी नदियें नाइ, कप्टें सुर सानिधदायी, पणसय चाप गुहा ठाई॥ ॥ वि०॥ १३॥ रयणमय पडिमा पूजे, तेनां पातिक डां ध्रजे, ते नर सीके नवे त्रीजे ॥ वि० ॥१४॥सा सय गिरि रायण पगलां, चन्मुख आदें चैत्य ननां, श्रीशुन वीर नमे सघलां ॥ वि०॥ १५॥ इति ॥ ॥ अथ पद राग पंजाबी ॥ ॥ खतरा दूर करनां दूर करना,एक ध्यान साहेबका धरनां ॥ खतरा॥१॥ जब लगयातम निर्मल करना, १९
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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