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________________ ( २१३ ) मने केलीघरनी मांहे ॥ फूलनी वृष्टि कीधी योजन ए कने मंमलें, बहु चिरंजीवो आशीष दीधी तुमने त्यांहे ॥ हा० ॥ १२ ॥ तमने मेरुगिरि पर सुरपतियें नवरा विया, निरखी निरखी हरखी सुकृत लान कमाय ॥ मुखडा उपर वारुं कोटि कोटि चंड्मा, वली तन पर वारुं ग्रहगणनो समुदाय ॥ हा ॥ १३ ॥ नंदन नव ला जणवा नीशाजें पण मूकशुं, गजपर अंबाडी वे साडी मोहोटे साज ॥ पसली नरशुं श्रीफल फोफल नागरवेलशुं, सुखडली लेशुं नीशालीयाने काज ॥ हा० ॥ १४ ॥ नंदन नवला मोहोटा थाशो ने परणा वसुं, वहूवर सरखी जोडी लावगुं राजकुमार ॥ स रखा वेवाई वेवाणुंने पधरावसुं वरवहु पोंखी लेशुं जोइ जोडने देदार ॥ हा० ॥ १५ ॥ पीर सासर माहारा बेदु पख नंदन कजला, महारी कूखें याव्या तात पनोता नंद ॥ महारे प्रांगण वृता अमृत दूधें मेदुला, महारे प्रांगण फलिया सुरतरु सुखना कंद ॥ हा० ॥ १६ ॥ इणि परें गायुं माता त्रिशला सुतनुं पालणं, जे कोइ गाशे नेशे पुत्र तथा साम्राज ॥ बीलीमोरा नगरें वरणव्युं वीरनुं हालरुं, जय जय मंगल होजो दीपविजय कविराज ॥ हा ० ॥ १७ ॥ इति ॥ " ॥ अथ रात्रिभोजननी सधाय प्रारंभः ॥ ॥ पुण्यसंजोगें नरजव लाधो, साधो यातम का ज ॥ विषया रस जाणो विष सरिखो, एम नांखे जिनराज रे || प्राणी रात्रीभोजन वारो || आगम
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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