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________________ (१९६) रे॥ सु० ॥ मोहन विजय सदामन रंगें, चित्त लाग्यु प्रनुने संगें रे ॥ सु ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री नेमिनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ दक्षिण दोहिलो हो राज॥ए देशी ॥ ॥कांश रथ वालो हो राज.साहामुं नीहालो हो राज, प्रीति संजालो रे वाल्हा यउकुलसेहरा ॥जीवन मीठा हो राज, मत होजो धीठा हो राज, दीठा अलजे रे वाहला निवहो नेहरा ॥ १ ॥ नव नव ना हो राज, तिहां शी सजा हो राज, तजत नजा रे कांसें रणका वाजीया ॥ शिवादेवी जाया हो राज,मां मेलो माया हो राज,किमहिक पाया रे वाहला मधुकर रा जीया ॥ २ ॥ सुणी हरणीनां हो राज, वचन कामी नां हो राज, सही तो बीना रे वाहला आघा या वतां ॥ कुरंग कहाणो हो राज,चूके न टाणो हो राज, जाणो वाहला रे देखी वर्ग वरंगनो॥३॥ विण गुन्हे चटकी होराज,बांगो मां बटकीहोराज,कटकी न कीजें रे वाहला कीडीथीघj॥ रोष निवारो हो राज,महेल पधारो दो राज, कां विचारो रे वाहला माबुजीम ॥४॥ एसी हांसी हो राज, होए विखासी हो राज,जुन विमासी रे अतिही रोष न कीजियें ॥ाचि शाली हो राज,सेज सुंधाली हो राज,वात ताली रे वाहला महारस पीजीयें ॥ ५॥ मुगतिवहिता हो राज, शाम वीता हो राज, तजी परिणीता रे वाह
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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