SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१एए) स्वामी ताहरो रे लो ॥ ५ ॥ हो ॥ राखरां हृदय मकार जो, आपोने शामलीया पदवी ताहरी रे लो। हो ॥ रूपविजयनो शिष्य जो, मोहनने मन लागी माया ताहरी रे लो॥ हो० ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री नमिनाथ जिनस्तवनं । ॥ आसगरा योगी ॥ ए देशी ॥ ॥आज नमिजिनराजने कहीयें, मीठे वचने प्रनु मन लहीयें रे ॥ सुखकारी साहेबजी॥प्रनु निपट निसनेही नगीना, अमें बूं सेवक प्राधीना रे ॥सु०॥ ॥ १ ॥ सूनजर करशो तो वरशो वडाई, सुकदि शे प्रठने लडाइ रे ॥ सु० ॥ तुमें अमने करशो मोहो टो, कुण कहेशे प्रनु तुने खोटो रे ॥ सु० ॥२॥ निः शंक थश्गुनवचन कहेशो, जगशोना अधिकी जेहे शो रे ॥ सु० ॥ अमें तो रह्या बुं तुमने राची, रखे आप रहो मन खांची रे ॥ सु० ॥ ३ ॥ अम्हें तो किस्युं अंतर नवि रावं, जे होवे हृदय कही दाखं रे ॥ सु० ॥ गुणियल आगल गुण कहेवाये, ज्यारे प्रीत प्रमाणे थाये रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ विषधर शहृदय लपटागो, तेहवो अमने मिल्यो ने टायो रे ॥ सु॥५॥ निरवहेशो जोप्रीत हमारी, कली कीरत थाशे तुमारी रे॥सु॥धूर्ताई चित्तडे नवि धरश्यो,कांश अवलो विचार न करशो रे ॥ सु॥ जिम तिम जागी सेवक जाणेजो, अवसर लही सुधि लहेजो रे ॥ सुप ॥६॥यासंगें कहीएं तुमने,प्रनु दीजें दिलासो अमनें
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy