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________________ (१७५) ॥ अथ श्री सुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ घोडी तो आइ थारा देशमां मारुजी॥ ए देशी॥ ॥ पदमप्रन तुम सेवना॥हेबजी॥ तेहज सम कित बीज हो ॥ ससनेहा ॥ अरज सुणो एक मा हरी ॥ सा०॥ ए आंकणी ए तो मेलो दोहिलो, सा० ॥ जिम तेरशने त्रीज हो ॥ सा ॥१॥अ॥ प्रनुविण अवर देवाथकी ॥सा॥ किम मन पूगे कोड हो । सन् ॥ सतणे कणे किम दूवे, सा० ॥ मुक्ताफलनी दोड हो ॥ स० ॥ २ ॥ अ० ॥ दूर थकी पण सांनरो, सा॥ समयमें सो सो वार हो। स० ॥ दर्शणीयानो उमाहलो, सा० ॥ पूरे तुं किर तार हो ॥ स ॥ ३॥ अ० ॥ बंधाणुं मन नक्तिथी, सा ॥ ते अलगुं नवि थाय हो ॥ स० ॥ विमल कमल मकरंद है, सा० ॥ तजी मधुकर किम जाय हो ॥ स ॥ ॥ अ०॥ प्रनु सुपसायथी पामीयें, सा० ॥ झानसदन गुणगेह हो ॥ स० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो, सा० ॥ निर्वहेशो साचो नेह हो। स० ॥ ५॥ अ० ॥ इति ॥ ॥अथ श्री पद्मप्रन जिन स्तवनं ॥ ॥ ढोला मारु घडी एक करहो फुकाव हो॥ए देशी ।। ॥परमरस नीनो माहारो, निपुण नगीनो माहरो साहेबो, प्रलु मोरा पदम प्रन प्राणाधार हो ॥ ए अांकणी ॥ ज्योति रमा थालिंगीने ॥ प्र० ॥ अबक बक्यो दिन रात हो, उलग पण नविं सांजले ॥प्र॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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