SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५६) श्रवणे ने सुणिया रे, गुण बहु ताहेरा रे ॥ सुण मोरा मीठडा सिरि जगवंत, केवल कमलाना हो कंत, सेवकने निज चरणे रे राजिंद राखजो रे॥१॥साते ने वली राज रे, राजिंद अल्गो वसे रे॥ तिहां किण ने श्रावणने रे, मनहं ननस रे ॥ सुण मोरा साहे ब लाल गुलाल, सेवकह नयणं निहाल, नय नीलीला रे तारी तारशे रे ॥ २ ॥ श्री शीतल जिन मुफ मन, मंदिर भावजो रे ॥ शिवरमणीना रसीया रे, दिलमा लावजो रे॥प्रनुजी मोरा ताहरं अकल सरूप, तुऊयी अगम नहिं मनरूप जीवडलो लल चाणो रे, प्रनुजीनी सूरतें रे ॥३॥ नेवं धनुप परिमारों रे, नंदा मातनो रे॥ श्रीवलंबन रे, दृढरथ तातनो रे॥प्रनु मोरा अवधारो गुए। गेह, जिनजी तुजगुं मुज मन नेह, नेहडलानी वातो रे, राजिंद दोहली रे ॥ ४ ॥ वीनतडी सांजलीने रे, साहामुंजालजो रे ॥ नव नवनां पातकडा रे, अलगां टालजो रे ॥ प्रनु मोरा तुमें बो गरीब नीवाज, श्री गुरु सुमति विजय कविराज, बालक सेवकने रे, लेखे आगजो रे ॥ ५॥ इति शीतल जिन स्तवनं ॥ ॥अथ श्री श्रेयांस जिन स्तवनं॥ ॥ विजल वोलावा ढुंग, कांई उनी सेरी विच ॥ विजल वालमा ॥ ए देशी ॥ ॥ तारक बिरुद सुगी करी, हुँ यावी ननो दरबा र ॥ श्रेयांस साहेबा ॥ प्रनु ताणो ताण नकी
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy