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________________ (१५५) लखमान के, आयुष्य वेलडी रेलो ॥ ७ ॥ निर्गुण निरागी पण ढुं रागी के, मनमाहे रह्यो रे लो॥ शुनगुरु सुमति विजय सुपसाय के, रामें सुख सह्यो रे लोल ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सुविधि जिन स्तवनं ॥ ॥ सोवन लोटा जलें जया कुडाली दोरी॥ शां शां दात लेश रे, व्योने राम ल्योने दोरी ॥ए देशी॥ ॥ सुविधि जिणेसर जागतो, जग मोहन सामी॥ राय सुग्रीवनो नंद रे, वंदो लाल अंतरजामी॥१॥ जरीय कचोली कुमकुमें, मांहे मृगमद घोली॥पूजो प्रनु नव, अंग रे, रंगें लाल सहीयर टोली ॥ २ ॥ केशरनी आंगी रची, मांहे हीरा दीपे ॥ जोर बन्यो जिनराज रे, तेजें लाल सूरज जीपे ॥ ३ ॥ मुकुट धस्यो शिर शोलतो, मणि रयण विराजे ॥ फलके कुं मल जोडी रे, हैयडे हार निर्मल बाजे॥ ४ ॥ करी पूजा मन नावगुं, प्रनु हैयडे धरती ॥ धरती ग्वती पाय रे, जोवे लाल जिनमुख फरती ॥ ५ ॥ काकंदी नयरी धणी, शत धनुषनी काया ॥ लाख पूरव दोय आय रे, नवमो लाल ए जिनराया ॥६॥ श्री सुमति विजय गुरुनामथी, नित्य मंगल माला ॥ रामविजय जयकार रे, जपतां लाल जिनगुण माला॥ ७॥इति ॥ ॥अथ श्री शीतल जिन स्तवनं ॥ ॥ पाटणनी पटोली रे, राजिंद लावजो रे लो॥ ए देशी॥श्रीनहिलपुरना वासी रे, साहेब माहेरा रे॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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