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________________ (ए६) घण मेघ जिम ॥ जिवाणी निसुरोश, नागी दूया पंचसया ॥ ३० ॥ वस्तु बंद ॥ण अनुक्रमें शण अनुक्रमें नाण संपन्न । पन्नरह सय परवरिय हरिय उरिय जिगनाह वंदे ।। जागवि जगगुरु वयण तिह नाण अप्पाण निंदे ॥ चरम जिणेसर इम नणे. गो मय म करिस खेन ॥ह जई आपण सनी, होसुं सुना बेन ॥३१॥ नापा ॥ सामि ए वीर जिणंद, पूनिम चंद जिम उनसित्र॥ विहरिए नरवासम्मि, वरिस बहुत्तर संवसिय ॥ठवतो ए कणय परमेश, पाय कमल संघे सहिथ ॥ प्रावि ए नयगाणंद, नयर पावापुरिसुर महिय ॥३२॥ पेखिन ए गोयम सामी, देवशर्मा प्रतिबोध करे ॥ आपणो ए त्रिशला देवि, नंदन पहोतो परम पए ॥ घलतो ए देव आ कास, पेखवि जाण्यो जिसमे ए॥ तो मुनि ए मन विखवाद, नाद नेद जिम नपनो ए॥ ३३ ॥ इण समे ए सामिय देखि, आप कन्हे दुं टालिन ए॥ जाणंतो ए तिहुश्रण नाह, लोक विवहार न पालि ए ॥ अति नलु ए कीधखं सामि, जाणिनं केवल मागशे ए॥चिंतविलं ए बालक जेम, अहवा केडे लागशे ए ॥ ३४ ॥ किम ए वीर जिणंद, जगतें जोलो नोलव्यो ए ॥ आपणो ए अविहल नेह, नाह न संपे साचव्यो ए ॥ साचो ए इह वीत राग, नेह न जेणें सालि ए॥ण समे ए गोयम चित्त, राग वैरागें वालि ए ॥ ३५ ॥ आवतो ए
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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