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________________ (GU) जी ॥ जसवंतसागर शिष्य परंपे, जिनें‍ वधते नेह जी ॥ ती० ॥ ८ ॥ इति श्रष्टापद स्तवनं ॥ ॥ अथ समवसरणनुं स्तवन ॥ ॥ एक वार गोकुल श्रावजो गोविंदजी ॥ ए देशी ॥ || एक वार व देश आवजो, जिणंद जी, एक वार देश जो ॥ दरिसरा नयन तेराव जो ॥ जिणंद जी, एकवार व देश यावज ॥ जयंतीने पाय नमाव जो ॥ जि० ॥ एक ० ॥ वली समोसरण देखावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ ए कणी ॥ समोवसरण शोना जे दीवी, कण कण सांभरी श्रावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ नूतन सुगंधी जल वरसावे, फूलना पगर जरावशे ॥ जि० ॥ ॥ एक० ॥ १ ॥ कनक रतननो पीठ करीने, त्रिगडा नी शोजा रचावशे । जि० ॥ एक० ॥ रूपानो गढने कनक कोशीशां, बच्चें रतन जडावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ २ ॥ रतनगढ़ें मणिनां कोशीशां, जगमग ज्योति दीपावजो || जि० ॥ एक० ॥ चारे वारें एंशी हजा रा, शिव सोपान चढावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ ३ ॥ देव चार कर आयु-६ धारी, द्वारें खडा करे चाकरी ॥ जि० ॥ एक० ॥ दूर पासथी एक समे वंदे, जरं तीने लघु बोकरी ॥ जि० ॥ एक० ॥ ४ ॥ सहस्स योजन ध्वज चार ते उंचा, तोरण चन ग्रह वावडी ॥ जि० ॥ एक० ॥ मंगल ग्राउने धूप घटाली, फूलमाल कर पूतली ॥ जि० ॥ एक० ॥ ५ ॥ आठ सुरी बीजे गढ छारें, रत्न गढें चल देवता ॥ जि० ॥ एक० ॥ जाति
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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