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________________ ( ७१ ) शिर मास मजार ॥ म० ॥ राणकपुरें यात्रा करी रे लाल, समयसुंदर सुखकार ॥ म० ॥ श्री० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सिदचक्रजीनुं स्तवन ॥ खाबे लालनी देशी ॥ ॥ समरी शारदा माय, प्रणमी निजगुरु पाय ॥ या लाल || सिद्धचक्र गुण गायशुं जी ॥ एसि६ चक्र याधार, नवि उतरे जव पार ॥ ० ॥ ते जणी नवपद ध्यायशुं जी ॥ १ ॥ सिद्धचक्र गुणगेह, जस गुण अनंत अवेद ॥ या० ॥ समस्यां संकट उपशमे जी ॥ लहियें वंडित जोग, पामी सवि सं जोग ॥ ०॥ सुरनर आवी बहु नमे जी ॥ २॥ कष्ट निवारे एह, रोगरहित करे देह ॥ श्रा० ॥ मयला सुंदरी श्रीपालने जी ॥ ए सिञ्चत्र पसाय, आपढ़ा दूरें जाय ॥ ० ॥ श्रापे मंगलमालने जी ॥ ३ ॥ ए सम अवर न कोय, सेवे ते सुखीयो होय ॥ ॥ आ० ॥ मन वच काया वश करी जी ॥ नव विल तप सार, पडिक्कमणुं दोय वार ॥ ० ॥ देववंदन ऋण टंकनां जी ॥ ४ ॥ देव पूजो त्रण वार, गणणुं ते दोय हजार ॥ या० ॥ स्नान करी निर्मलपणे जी || राधे सिश्चक, सान्निध्य करे तेन शक्र ॥ ० ॥ जिनवर जन ागें नणे जी ॥ ॥ ५ ॥ ए सेवो निशि दीस, कहीयें वीशवा वीश ॥ ॥ प्रा० ॥ यान जंजाल सवि परिहरो जी ॥ ए चिंतामणि रत्न, एहनां कीजें जन ॥ श्र० ॥ मंत्र नही एह नपरें जी ॥ ६ ॥ श्री विमजेसर जछ, ·
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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