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________________ (६७) विकानेरज वंदीयें, चिरनंदी रे ॥ अरिहंत देहरां आठ॥ ती० ॥ सोरिसरो संखेसरो, पंचासरो रे॥फ लोधी थंनापास ॥ ती० ॥ ५॥ अंतरिक अजाव रो, अमीकरो रे ॥ जीरावलो जगनाथ ॥ ती० ॥त्रै लोक्य दीपक देहरो, जात्रा करो रे ॥ राणपुरें रिस हेस ॥ ती० ॥ ६ ॥ सारंगे अजित जुहारियें, दुःख वारिये रे ॥ थराधे श्रीमहावीर ॥ ती॥ नवा रे नग रनां देहरां, बावन नलां रे ॥शा रायसी वईमानन राव्यां बिंब ॥ती० ॥७॥श्रीनामुलाइजादवो,गोडि स्त वो रे॥ श्रीवरकागो पास ॥ ती० ॥ नंदीश्वरनां देह रां, बावन जला रे ॥रुचक कुंमलें चार चार ॥ ती ॥ ७॥ शाश्वती अशाश्वती, प्रतिमा बती रे॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल ॥ ती० ॥ तीरथ जात्रा फल तिहां, होजो मुज इहां रे ॥ समयसुंदर कहे एम॥ ती॥॥ ॥अथ श्री सिमाचलजीनुं स्तवन लिख्यते ॥ ॥अांखडीये रे में आज शेठेजो दीठो रे, सवा लाख टकानो दाहाडो रे, लागे मुने मीठो रे ॥ ए यांकणी ॥ सफल थयो रे महारा मननो उमाहो, वाहला मारा नवनो सांसो नांग्यो रे ॥ नरक तिर्यच गति दूर निवारी, चरणे प्रनुजीने लाग्यो रे ॥ शेत्रं जो दीगो रे ॥१॥ मानव नवनो लाहो लीजें ॥ वा ॥ देहडी पावन कीजे रे ॥ सोना रूपाने फू लडे वधावी, प्रेमें प्रदक्षिणा दीजे रे ॥ शे० ॥ २ ॥ उघडे परखालीने केशरें घोली॥ वा० ॥ श्री यादीस
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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