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________________ (६१) हियल माने मोहोटा राय, जो तूने गौतमना पाय ॥ ७॥ गौतम प्रणम्यां पातक टले, उत्तम नरनी संगति मले ॥ गौतम नामें निर्मल झान, गौतम ना में वाधे वान ॥ ७ ॥ पुण्यवंत अवधारो सदु, गुरु गौतमना गुण ने बहु ॥ कहे लावण्य समय कर जो ड, गौतम तूठे संपति कोड ॥ ए ॥ इति ॥ ॥अथ नवकारनो बंद ॥ ॥ दोहा ॥ वंबित पूरे विविध परें, श्री जिन शा सन सार । निश्चं श्री नवकार नित, जपतां जय जयकार ॥ १ ॥ अडसह अदर अधिक फल, नव पद नवे निधान ॥ वीतराग स्वयं मुख वदे, पंच पर मेष्टि प्रधान ॥ २ ॥ एकज अदर एक चित्त, समस्या संपति थाय ॥ संचित सागर सातनां, पातक दूर प लाय ॥३॥ सकल मंत्र शिर मुकुटमणि, सदगुरु ना पित सार ॥ सो नविया मन गुरुलं, नित जपीएं नवकार ॥॥ बंद हाटकी॥ नवकारथकी श्रीपाल नरे शर, पाम्यो राज्य प्रसि६॥ समशान विपे शिव नाम कुमरनें, सोवन पुरिसो सिम ॥ नव लाख जपंतां न रक निवारे, पामे नवनो पार ॥ सो नवियां न चोखें चित्तें, नित्य जपीयें नवकार ॥ ५॥ बांधि वड शाखा शिंके बेसि, हेवल कुंम हुताश ॥ तस्करने में त्र समर्यो श्रावकें, कम्यो ते आकाश ॥ विधिरीत जप्यो विषधर विष टाले, ढाले अमृत धार ॥ सो ॥ ६ ॥ बीजोरां कारण राय महाबल, व्यंतर उष्ट
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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