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________________ (६०) जगचिंतामणि तिणे कस्यो ॥ मारा० ॥ तापस बोध विख्यात ॥ नम्मी० ॥ ६ ॥ ए गिरि महिमा मोटको ॥ मारा ॥ तिण नव पामीजें सिदि ॥ नमी० ॥ निज लब्धं जिनवर नमी ॥मारा ॥ पामे शाश्व त ६ ॥ नमी० ॥ ७ ॥ पद्मविजय कहे एहनां ॥ मारा ॥ केतां करूं रे वखाण ॥ नमी । वीरें स्वयंमुख वरणव्या ॥ मारा । नमता कोड कल्या एग ॥ नमी० ॥ ७ ॥ इति अष्टापद नवनं संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री गौतमाष्ठक बंद ॥ ॥ वीर जिणेसर केरो शिष्य, गौतम नाम जपो निशिदीस ॥ जो कीजें गौतमनुं ध्यान, तो. घर विल से नवे निधान ॥ १ ॥ गौतमनामे गिरुअरि चढे. मनवंबितहेला संपजे ॥ गौतम नामें नावे रोग, गौतम नामें सर्व संजोग ॥॥ जे वैरी विरूवा वंकडा, जस नामें नावे दकडा ॥ नूत प्रेत नवि मंमे.प्राण, ते गौतमनां करूं वरखाण ॥ ३ ॥ गौतम नामें निर्म ल काय, गौतमनामें वाधे आय ॥ गौतम जिनशा सन शणगार, गौतमनामें जय जयकार ॥ ४ ॥ शाल दाल सुरहा घृत गोल, मनवंडित कापड तंबो ल॥ घरगुं घरणी निर्मल चित्त, गौतम नामें पुत्र विनीत ॥ ५ ॥ गौतम उदयो अविचल नाण, गौत म नाम जपो जग जाण ॥ मोहोटां मंदिर मेरु स मान, गौतम नामें सफल विहाण ॥ ६ ॥ घर मय गल घोडानी जोड, वारू पोहोंचे वंबित कोड ॥ म
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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