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________________ (४२) नयणें निरखी नाथ निहालो, नावना इमविएं ॥ जा ॥ ७ ॥ पहिले मंगल जिनचोवीशे, बीजे गोयम गणहरू ॥ त्रीजे मंगल सहगुरु नामें, चोथो जिन शासनवरू ॥ ॥ मूलगां ए चार मंगल, सुप्र जातें सोहामणां ॥नणे नंदीसर सयल लखकर,दीन हरष वधामणां ॥ जा० ॥ए । इति मंगलम् ॥ ॥ अथ श्री महावीर स्वामीनां पांच कल्या ॥ ॥गिक, चोढालीयुं प्रारंजः ।। ॥ दोहा ॥ प्रेमें प्रणमुं सरसती, मागुं अविरल वाणि ॥वीर तणा गुण गाया, पंच कल्यारिक जाणि ॥१॥गुण गातां जिनजी तणा, लहीए नवनो पार ।। सुख समाधि होए जीवनें, सुणजो सदु नर नार ॥॥ ॥ ढाल पहेली ॥ चालो गरबो रमीएं रूडा ॥ ॥रामगुं जो॥ ए देशी॥ ॥ जंबूहीपना जरतमां जो, रुडूं माहणकुंम ले गाम जो ॥ पनदत्त माहग तिहां वसे जो, तस नारी देवानंदा नाम जो॥१॥ चरित्र सुगो जिनजी तणां जो ॥ ए आंकणी ॥ जेम समकित निर्मल थाय जो ॥ अष्ट माहासिदि संपजे जो, वली पा तक दूर पलाय जो ॥ च ॥ २॥ उजलीबह आषा ढनी जो, योगें उत्तराफाल्गुनी सार जो ॥ पुप्फोत्तर सुविमानथी जो, चवी कूखें लीयो अवतार जो॥च॥ ॥३॥ देवानंदा तेणी रयपीएं जो, सूतां सुपन लह्यां दश चार जो ॥ फल पूछे निज कंतने जो,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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