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________________ (४१) साने वैरी विचें, नवि करघु वेहेरो ॥ परना अवगुण देखीने, नवि करयुं चेहेरो ॥ ते ॥ ५॥ धरम स्था नक धन वावरी, बकायने हेतें ॥ पंच महाव्रत ले नें, पालगुं मन प्रीतें ॥ ते ॥ ६ ॥ कायानी माया मेलीने, परीसहने सहेगुं ॥ सुख दुःख सघला विसा रीने, समनावें रहेगुं॥ ते० ॥॥ अरिहंत देवनें उतरवी, गुण नेहना गायुं ॥ उदय रतन इम नचरे, त्यारे निरमल थारां ॥ ते ॥ ७ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ प्रनातें मंगल राग जैरव ॥ ॥ जाग नविया धर्म वाहाणुं, साद सद्गुरुनो सु एगी ॥ काज कर जीव पुण्य केरा, मोह निश पर हरी॥ जा ॥१॥पूरव दिशें जिनतणी वाणी, झान दिनकर नगीयोहर्ष हईडा कमल विकस्यां, पाप तिमिर वही गयो ॥ जा ॥ २ ॥ धर्म मारग दु परगट, हृदय.नयण निहालीएं । ध्यान जल नव कार दातण, करी वदन पखालीएं ॥ जा ॥ ३ ॥ सूरजकुंम जई स्नान कीजें, निरमल धोती पेहेरीएं ॥ श्रीआदिनाथ युगादि वंदी, अष्ठ कर्म निवारीएं॥ ॥ जा ॥४॥ शीयल समकित धोति पेहेरी, कुसुम करणी कर धरी ॥ प्रह उठी प्रासाद जाएं, श्रीजिन पूजा श्म करी ॥ जा० ॥ ५॥ सत्य वचन तंबोलना रंग, शीत सिणगार पेहेरीएं ॥ माय बाप देव गुरु तेहनां, चरणकमल जुहाररिएं ॥ जा० ॥ ६ ॥ गं नारे जइ पूजा रचीएं, रंग मंझप रलियामणो ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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