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________________ ( ११ ) आत्माका लक्षण बिलकुल जुदा प्रकारका है, तब फिर वह जड़में कैसे: रह सकता है ! हम अपने निजी अनुभवसे जानते हैं कि यदि हमें अपने आसपास की ऐसी वस्तुओंके बीच में जो कि अपने सरीखी लक्षणोंवाली नहीं है रहना पड़े तो लोग समझेंगे कि, जब आसपासकी वस्तुओं के साथ इनका कुछ सम्बन्ध नहीं है, तब उनके वीचमें रहना जरूरी होनेका कुछ कारण होना चाहिए । परन्तु वह कारण बुद्धि गत होना चाहिये -- जड़ वस्तुमें नहीं होना चाहिये । क्योंकि बुद्धि. कुछ जड़ वस्तुमेंसे उत्पन्न नहीं होती है। कोई भी जड़ वस्तु अपने में बुद्धि है, ऐसा सुबूत अभी तक नहीं दे सकी है। जब उस में सत्व (जीव ) होगा तभी वह कह सकेगी कि बुद्धि है । सत्वके विना बुद्धि नहीं हो सकती है । I यह तो हमको विश्वास है कि बुद्धिपर जड़ वस्तुका असर होता है । परन्तु कुछ नड़ वस्तुमेंसे बुद्धि नही निकलती है । जिस समय मनुष्य पूर्ण रीति से सचेत - सावधान होता है, उस समय यदि उसे कोई नसेकी चीज पिला दी जाती है, तो उससे उसकी बुद्धि कुछ काम नहीं कर सकती है। इस जड़ वस्तुका असर चेतन वस्तु ( आत्मा ) पर क्यों होता है ? जीव स्वयं यह समझता है कि, जो यह देह है, वही मैं हूं और जड़ देहको जो कुछ होता है, वह आपको होता है। यहां क्रिश्चियन शास्त्रवेत्ता, रसायनशास्त्रवेत्ता और जैन तत्वज्ञानी तीनोंका एकमत हो जाता है । जबतक आत्मा यह. विचारता है कि " जो देह है वही मैं हूं " तबतक देहको जो कुछ होता है, वह आपको हुआ है ऐसा समझता है । परन्तु यदि एक क्षणभर आत्मा यह विचार करता है कि, "मैं और देह दोनों जुदा जुदा.
SR No.010284
Book TitleJain Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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