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________________ (तृतीय मान स्थिर करना चाहिए । तभी " सत्य क्या है ?" ऐसा वह सोच सकता है और असत्य के पथ का परित्याग करके सत्य को प्राप्त कर सकता है। __ ऐसी स्थिरता का उद्देश्य ही निवृत्ति धर्म है। सामायिक व्रत से इसका प्रारम्भ होकर श्रमणसन्यास व्रत इसका आदर्श बना । इसीलिए यहाँ पर सवर में आश्रव द्वारो को रोकने की बात कहने के अतिरिक्त साधुधर्म के कितने ही अग भी इसके अन्तर्गत किये गये है। वे इस प्रकार हैं - पांच समिति, तीन गुप्ति, बाईस परीषह, दश यतिधर्म वारह भावना और पाच चारित्र । असलियत यह है कि ये अग सवरतत्त्व तक ही मर्यादित नही रहते हैं किन्तु ये अग निर्जरा मे भी कारणभूत बन सकते हैं। पाच समिति और तीन गप्ति के सवध में पहिले कहा जा चुका है । वाईस परीपह के नाम इस प्रकार हैं :- । - (१) भूख, (२) प्यास, (३) ठण्ड, (४) गरमी, (५)डासमच्छर का वास.(६) वस्त्र सवधी परीषह, (७) सयम मे किसी समय उत्त्पन्न होने वाली कठिनाइयो सबधी दुख अथवा अति, (८)रूप-सौन्दर्य देखकर मोह-उत्पत्ति सबधी दु ख अथवा स्त्री परीषह, (९) सोने का अनुकूल स्थान नही मिलने पर तत्सवध दुःख, (१०) रहने के लिए अनुकूल स्थान नही मिलने पर तत् संवधी दुख, (११) पैदल चलने से पाद-विहार करने पर उत्पन्न होने वाले दु ख (१२) कोई खराव शब्द कहे उस सबधी दुरू
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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