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________________ जैन पाठावली) (७९ ही है कि शुभ क्रिया मे नीति, प्रामाणिकता, परहिन बुद्धि और ऐसे ही अन्य सात्विक कार्य हों। प्रश्न-नीति और प्रामाणिकता को समझने का मापदद क्या? उत्तर-अपने न्यायानुकूल कर्तव्य का अधिक प्रतिफल नही लेना, असत्य नही बालना, कपट व्यवहार-धोखेबाजी नहीं करना, अन्य की वस्तु नही लेना, अन्य की धरोहर-अनामत नहीं दवाना, कुटुम्ब, ग्राम, देश अथवा राष्ट्र के प्रति अनुकूल होना आदि रूप से सामान्य नीति का पालन करना, यही नैतिकता और प्रामाणिकता है। ' इसके अतिरिक्त दूमरो का भला करना, दूसरो के दुख दूर करना, आत्म-भोग देना, दूसरो को सुखी देख कर सुखी होना एय दुःखी देखकर दुख अनुभव करना, ये भी पुण्य के ही लक्षण है । मेघकुमार की आत्मा ने हाथी के भव मे खरगोग को रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिये, उसी के परिणाम से राजा श्रेणिक । के यहाँ मेघकुमार के रूप मे वे पुत्र हुए, हाथी से मनुष्य हुए एक । योग्य वातावरण तथा साधनसपन्न हुए । यह पुण्य का ही परिणाम है। पुण्यशाली और पापी? रसी प्रकार नीति द्वारा प्राप्त किये हुए मवध और साधन भी पुण्य अथवा पुण्य से ही परिणाम कहे जा सकते है । कितने ही मनुष्य धन को ही पूण्य मानते है, किन्तु इगसे धनवान पुण्य " वाले ही है, यह मत्य नहीं है । नीति और प्रामाणिताना द्वारा * भाजीविका चलाते हुए धन एकम करके उसका उपयोग वय
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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