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________________ - - तृतीय भाग) (२१३ यह बात शुक परिव्राजक को मालम पडी । उसने सोचामेरे शिष्य पर ऐसा प्रभाव डालने वाला कौन है ? वह अपने एक हजार तापसो को साथ लेकर थावच्चापुत्र मुनि के पास पहुंचा। उसने मुनि से कुछ प्रश्न किये ठीक उत्तर सुनकर उसे लगा कि ऐसे ही मुनि जगत् का कल्याण कर सकते हैं। अपने हजारो तापस शिष्यो के साथ शुक सन्यासी ने थावच्चापुत्र मुनि के पास दीक्षा लेली । उन्होने पांच महाव्रत स्वीकार किये और वह विहार करने लगे । विहार करते-करते वे शैलकपुर पहुंचे। कोई मुनि पधारे हैं, यह समाचार सुनकर राजा भी वहाँ गया । उपदेश सुनकर राजा ने भी त्याग का मार्ग ग्रहण करने का निश्चय किया। राजमहल में आकर मत्रियो की सलाह ली और मडूक को राज्य सौंपने की इच्छा प्रकट की। उसके पाँच सौ मत्री भी दीक्षा लेने के लिए तैयार हुए। शैलक राजा अब शैलक ऋषि हो गये। शैलकऋषि ने ग्यारह अगो का अभ्यास किया और बडे विद्वान् हो गये । शुकदेव गुरु ने पाच सौ मत्रियो को शैलक का शिप्य बनाया। शैलकऋषि अब पांच सौ शिष्यो के परिवार के साथ विचरने लगे । शैलक के आत्मबल और तप का क्या कहना । रूखा-सूखा खाते । वह भी कभी मिलता, कमी नही मिलता । यो करते-करते उन्हें पित्तज्वरका रोग हो गया। गांव-गाँव-विचरते हुए एक वार वे अपने ही गाँव मे पहुंचे। मडूक राजा उनके दर्शन करने गया ।-शैलक ऋषि को बीमार
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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