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________________ २१२) (जैन पाठावली जहाँ मत्री अच्छे होते है वहाँ प्रजा सुखी होती है। वहाँ राजा और प्रजा मे प्रेम होता है। इसी कारण सेलकपुर के राजा और प्रजा के प्रेम की सब जगह प्रशसा होती थी। एक वार भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य थावच्चाकुमार विचरते-विचरते वही आये । उनके साथ बहुत से शिप्य थे। नगर के वाहर सुभूमिभाग नामक बगीचे मे उन्होने निवास किया। राजा और प्रजा वहाँ गये और उनका उपदेश सुना । मुनिराज का उपदेश शैलक राजा को बहुत प्रिय लगा। वह थावच्चाकुमार मुनि का श्रावक-शिष्य बना । पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षानत-यह श्रावक के बारह व्रत कहलाते है । पथक वगैरह मत्रियो ने भी यह व्रत धारण किये। सव भोग-विलास की मर्यादा करके आत्मा का कल्याण करने लगे। मुनि थावच्चापुत्र ने वहाँ मे विहार किया । उपदेश देते और विचरते-विचरते वे सौगधिका नगरी में पहुँचे और नीलाशोक नामक बगीचे मे उन्होने वास किया । उसी नगरी में एक सेठ रहता था। उसका नाम सुदर्शन था। सुदर्शन को शुक परिव्राजक पर श्रद्धा थी। वहुत-से लोग थावच्चापुत्र मुनि का उपदेश सुनने गये । सुदर्शन सेठ भी वहां गया। मुनि के उपदेश का उस पर बहुत असर पडा। प्रवचन पुरा हो चकने के बाद सुदर्शन सेठ ने बहत-से प्रश्न पूछे । उसके, मन का समाधान हो गया । अत मुनि पर उसकी श्रद्धा और बढ़ गई।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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