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________________ तृतीय भाग) (२०५ प्रजा के मन में रहता है । धन के लोलुप राजा प्रजा के हृद स्थान नही पा सकते । धन के लुटेरे राजाओ के लिए 'रा __ सो नरकेश्री' कहावत लागू होती है । सप्रति अन्त में बीमार और किसी उपाय से न बच सके । सम्राट् सप्रति मरकर भी अमर है । जिसके काम अमर उसका नाम अमर | अशोक राजा बौद्ध-सघ में अमर है । श्रेणिक राजा जैन-सघ में अमर है ! सप्रति राजा सभी की तरह अमर है। धन्य, संप्रति महाराज धन्य हैं ! - सती सुभद्रा • "", . -weजिनदास मन्त्री की सुपुत्री श्रीसुभद्रा नाम है, शम शीलवंती धर्मवंती विनयशील ललाम है । मनि नयनरो कण काढते माथे कलक चटा अहो । पर शील के सुप्रभाव से वह नए क्यों नहिं हो कहो ? सोलह- सतियो के नामो में सुभद्रा सती का भी नाम है। सुभद्रा का अर्थ है-सुन्दर कल्याण वाली ।' सचमुच सुभद्रा में
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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