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________________ तृतीय भाग) म्वन्धी भोग भोगकर फिर दीक्षा ले | . जम्बू - ससार के भोग तो पत्थर के समान है । उसमें बन्दर फँसा और बेचारे को प्राण देने पडे । हम लोग मझदार है । ऐसा करना क्या हमें शोभा देता है ? ( १९७ अव प्रभव और उसके साथी चोरो को भी इसबातचीत मजा आने लगा । जम्बू का सत्सग उन्हे आनन्ददायक लगा । प्रभव ने कहा--जरा बन्दर की कहानी तो सुनाइए ? जम्बू - हाँ, सूनो । एक बन्दर था । वह बहुत-सी बन्द रियो के साथ जंगल में रहता था । फल खाता, झरनो का पानी पीता और मौज करता था । कुछ दिनो बाद वह बूढा हो गया । - एक बार अजनवी जवान व दर वहाँ आया । वह खूब - सूरत था और जवान था । इस कारण बन्दरियो को वह बहुत पसन्द आया । सव ने मिलकर बूढे बन्दर को भगा दिया | वह ' बेचारा जाना नही चाहता था, पर लाचार | करता क्या ? उसे जाना पडा । चलते-चलते उसे पहाड मिला । बूढा बन्दर बहुत प्यासा था । उसने वहाँ शिला रस झर्रता देखा । समझा यह पानी है । विचार किये बिना ही वह पास मे गया और उसमें मुँह लगा दिया । उसी समय उसका मुँह उसमें चिपक गया । उसने हाथ टेक कर मुँह निकालने की कोशिश की तो हाथ भी चिपक गये । पैर भी चिपक गये । अन्त मे हाय-हाय करते मर गया ।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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