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________________ जैन पाठावली) . अर्थ पंचण्हं अणुव्वयाणं- ___पाच 'अणुव्रतो का तिण्हं गुणव्वयाणं तीन गुणवतो का चिउण्ह सिवखाक्याणं- चार शिक्ष'व्रतो का वारसविहस्स सावगधम्मस्स-बारह प्रकार के श्रावकधर्म का १ अणुव्रत अर्थात् छोटे व्रत । साधुओ के व्रत महावत ___ कहलाते हैं, क्योकि उनमें हिंसा, असत्य आदि पापो की, किसी भी प्रकार की छूट नही रहती-हिंसा आदि का जीवनपर्यन्त पूर्ण रूप से त्याग किया जाता है । मगर श्रावक-श्राविकाओ के व्रत एकदेशीय है, उनमे पापो का सर्वथा त्याग नही किन्तु मर्यादित ; त्याग किया जाता है। २ वारह व्रतो में से ६-७-८वा व्रत तो गुणव्रत कहलाता है। ३ वारह ब्रतो में से ६-१०-११-१२ वां ये चार शिक्षावत कहलाते हैं। ४ बारह व्रतो के नाम(१) प्राणातिपातविरमण व्रत-हिंसा का त्याग करना । (२) मृपावाद , - असत्य का , (३) अदत्तादान , -चोरी का , (४) मैथुन -मथुन सेवन का,,(ब्रह्मचर्य पालना) (५) परिग्रहपरिमाणवत-परिग्रह की मर्यादा करना। (६) दिपरिमाणवत- दिशाओ मे आने जाने की मर्यादा करना । (७) उपभोग-परिभोगपरिमाणवत-एक वार उपयोग में आने वाली तथा बारबार उपयोग - -
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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