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________________ १०) ( तृतीय भाग अर्थ अकप्पो अकरणिज्जोदुज्झाओ दुविचितिमोअणायारो अणिच्छियवो-.. असावगपाउग्गो अकल्पनीय काम किया हो । न करने योग्य काम किया हो खराव ध्यान ( आर्त और रोड ध्यान ) किया हो। अशुभ चिंतन किया हो आचरण न करने योग्य काम क आचरण किया हो अनिच्छनीय की इच्छा की हो श्रावक को न शोभे, ऐसा कृत्य किया हो ज्ञान और सम्यक्त्व के विपय में श्रावक के चरित्र के विषय में सूत्रधर्म और सामायिक के विषय में कतीन गुप्ति सम्बन्धी x चार कपायो द्वारा नाणे तह दसणेचरित्ताचरित्तेसुए, सामाइएतिण्हं गुत्तीणंचउपहं कसायाणं - तीन गुप्ति- (१) मनगुस्ति (२) वचनगुप्ति और (३) गुप्ति । गुप्ति का अर्थ है-गोपना अर्थात् खराव रास्ते जाते हुए को रोकना । " x चार कपाय-~-क्रोध, मान, माया, लोभ । कप आय जिसमे ल चिपके वह वपाय है । क्रोध आदि से आत्मा में कर्म पी मैल चिपकता है, इसलिए ये कपाय कहलाते है । इनके द्वारा जो पाप हुआ हो ।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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