SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'प्रतिक्रमण - स्वभाव में वापसी, निन्द्य-कर्मों से निवृत्ति ; प्रत्यावर्तन 1 प्रतिज्ञा - शपथ, साध्य वचन का निर्देश, धर्म-धर्मी का स्थापन | प्रतिपत्ति - निश्चयात्मक बोध, सावधानीपूर्वक उपदेश ग्रहण । प्रतिपात - प्रतिपादन पुनः पतन, ; संयम सेवन | प्रतिबुद्ध - आत्म- जागृत, सम्यक्त्व-विकास । प्रतिभा - ज्ञान एव क्षमता की उत्तरोत्तर वृद्धि । प्रतिमा - श्रावक के नियम विशेष, गृहीत नियम का जीवन पर्यन्त निर्वाह ; मूर्ति । ; प्रतिमान् -लघु नाप-तौल पूर्व की अपेक्षा का सद्भाव । प्रतिलेखन – निरीक्षण, प्रमार्जन, देखें पडिलेहन । - प्रतिष्ठा - स्थापना; प्रतिमा में परमात्म-स्वरूप का संस्थापन | प्रतिष्ठापन समिति - यतनापूर्वक वस्तु का विसर्जन | प्रत्यक्ष - आत्म- सापेक्ष प्रमाण, इन्द्रिय-निरपेक्ष ज्ञान प्रत्यभिचान - प्रत्यक्ष दर्शन और स्मरण के सहयोग से होने 'यह वही है, जो पहले था ' -- इस प्रकार [ ५६ ] वाला ज्ञान का ज्ञान । "
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy