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________________ दुःषमा-कालचक्र का एक विभाग। समय-सीमा-इक्कीस __ हजार वर्ष । दृष्टान्त-साध्य और साधन धर्मों का सम्बन्धकारक ; संगति पूर्वक विषय का ग्रहण । देव-आप्त-पुरुष , अहं न, जिनेश्वर , देवता । देवमूढ़ता-राग-द्वेषयुक्त देवताओं की उपासना । देश-स्कन्ध का आधा भाग। देखें-स्कन्ध । देशकाल-अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति का अवसर, काल । देशना-उपदेश । देशव्रत/देशविरत-१. एक गुणव्रत , व्रत-रक्षा के लिए उस देश में जाने का त्याग, जहाँ जाने से व्रत-भंग की सम्भावना हो , देश-देशान्तर में गमनागमन या व्यवसायसम्बन्धी मर्यादा रूप व्रत , २. पाँचवाँ गुणस्थान; सम्यक्त्व के गुणों को आचरण में स्तोकत:/सीमित दायरे में प्रकट करना। द्रव्य-गुणाधार पदार्थ , गुणो और पर्यायो का आश्रयभूत पदार्थ , जीव, पुदगल आदि के भेद से छह प्रकार का । द्रव्यकर्म-जीव के कषाय के योग से आवद्ध होने वाला सूक्ष्म कर्म-पुद्गल-स्कन्ध । [ ६८ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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